Thursday, 27 June 2013

मेरा मन ...

होती है शाम जब,
यूँ ही उदास हो जाता है मेरा मन...

जाने क्यों रह - रह कर,
मुझको सताता है मेरा मन...

वो कौन है जिसके ख्यालों में,
डूबा रहता है मेरा मन...

हर जगह, हर पल,
उसे ही खोजा करता है मेरा मन...

जाने कब आएगी वो घड़ी
जब होगा उसका और,
मेरा मिलन...

मुझे तड़पाने वाली,
रातों में जगाने वाली
जिया...!

कहीं न कहीं तो होगी,

क्योंकि...
जैसा है मेरा मन,
शायद! वैसा ही हो उसका मन...

           
                                           केशव "जिया"

Tuesday, 25 June 2013

अब के सावन...

अब के सावन आ रही  है तेरी याद,
जाने क्यों पागल कर देती है तेरी याद, 
रोके न रूकती है तेरी याद, 
के दिल चाहता है, मिलूँ मैं तुझसे,
अब के सावन में...

पर डर लगता है अपने आप से,
के कोई गुनाह न हो जाए कहीं मुझसे, 
अब के सावन में ...

लगी है आग
मेरे मन में, तुझसे मिलने की,
के शायद 
तुझे भी हो तड़प, मुझसे मिलने की 
तू है बेचैन, मैं हूँ बेताब 
अब के सावन में ...

न लगे दिल तेरा और न मेरा,
करते हैं हम दीदार एक दूजे का 
अब के सावन में ...

    - केशव  "जिया"