बैठी है रूठकर वो इस कदर,
के जैसे कोई मनाने वाला ही नहीं
आँखों में उसकी ऐसा नशा,
के जैसे शराब में भी नहीं...!
रूखसार उसके ऐसे गुलाबी,
के जैसे हो कली गुलाब की
लब उसके ऐसे छलकाए ज़ाम,
के न हो कोई मयकदे की महफिले-आम
कैसे करूँ बयां...!
मेरा हाल-ए-दिल,
उस ज़ालिम से "ऐ जिया"
जो बैठी है रूठकर,
इस कदर...
-केशव प्रधान "जिया"
के जैसे कोई मनाने वाला ही नहीं
आँखों में उसकी ऐसा नशा,
के जैसे शराब में भी नहीं...!
रूखसार उसके ऐसे गुलाबी,
के जैसे हो कली गुलाब की
लब उसके ऐसे छलकाए ज़ाम,
के न हो कोई मयकदे की महफिले-आम
कैसे करूँ बयां...!
मेरा हाल-ए-दिल,
उस ज़ालिम से "ऐ जिया"
जो बैठी है रूठकर,
इस कदर...
-केशव प्रधान "जिया"